Ras Kise Kahate Hain – हिंदी व्याकरण में रस को काव्य की आत्मा माना जाता है, हर रस आनंद की अनुभूति के बारे में बताते हैं, हम इस आर्टिकल Ras In Hindi के माध्यम से रस विषय के ऊपर चर्चा करने वाले हैं, यहां पर आप जानेंगे Ras Ki Paribhasha, Prakar, Udaharan Aur Niyam आदि।
Definition Of Ras In Hindi – रस की परिभाषा
रस शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आनंद‘काव्य को पढ़ते समय जिस आनंद की अनुभूति होती है उस अनुभूति कोही ‘रस‘ कहा जाता है। रस को साहित्य की आत्मा कहा जाता है।
जिस प्रकार से किसी औषिधि में रस नहीं होता तो वह निष्प्राण होती है और जिस भोजन में रस नहीं है वह नीरस भोजन होता है और उसे खाने में किसी प्रकार का आनंद नहीं आता ठीक उसी प्रकार साहित्य या काव्य भी रस के ‘बिना’ नीरस हो जाता है। बिना रस के किसी साहित्य को पढ़ना, बिना दाल के चावल खाने के समान है। उससे पेट तो भरता है लेकिन आनंद नहीं आता है।
जिस प्रकार से परमात्मा का यथार्थ बोध करवाने के लिए उनको रस-स्वरूप तथा ‘रसो वै सः’ कहा गया, ठीक उसी प्रकार से परमोत्कृष्ट साहित्य को यदि रस-स्वरूप तथा ‘रसो वै सः’ कहा जाय, तो किसी भी प्रकार की कोई अत्युक्ति न होगी।
साहित्य में रस का होना बहुत जरूरी है क्यूंकि बिना रस के साहित्य कभी सफल नहीं हो सकता। जिसका मुख्य कारण यह है कि बिना रस के साहित्य को पढ़ना किसी भी साहित्यकार को स्वीकार नहीं और जिस साहित्य को साहित्यकार स्वीकार नहीं करते तो वह साहित्य बिना आत्मा के शरीर की तरह है। साहित्यकार को ही साहित्य की आत्मा माना जाता है।
साहित्य दर्पण के रचयिता के अनुसार – ”रसात्मकं वाक्यं काव्यम्” अर्थात रस ही काव्य की आत्मा है। और जिस प्रकार आत्मा के बिना मानव शरीर की कल्पना करना कठिन है ठीक उसी प्रकार ‘रस’ के बिना साहित्य की कल्पना भी अत्यंत मुश्किल है।
रस की व्युत्पत्ति दो प्रकार से दी जाती है–
(1) सरतिइति रसः – अर्थात जो सरणशील, द्रवणशील तथा प्रवहमान हो, वह रस कहलाता है।
(2) रस्यते आस्वाद्यते इतिरस: – अर्थात जिसका आस्वादन किया जाए, वह रस है। साहित्य में रस इसी द्वितीय अर्थ- काव्यास्वाद अथवा काव्यानंद- में गृहीत है।
जिस तरह से मिठाई खाकर हमारे मन और जीभ को स्वाद आता है तथा तृप्ति आती है ठीक उसी प्रकार एक मधुर काव्य का रसास्वादन करके पाठक को आनंद मिलता है। पाठक को आनंद मिलना किसी साहित्य के लिए गर्व की बात की है। इस आनदं का न तो कोई अंत है और न ही शुरुआत और इसी साहित्यक आनंद को “रस” के नाम से जाना जाता है।
मम्मट भट्ट के अनुसार (काव्य प्रकाश के रचयिता) – आलम्बनविभाव से उदबुद्ध, उद्यीप्त, व्यभिचारी भावों से परिपुष्ट तथा अनुभाव द्वारा व्यक्त हृदय का ‘स्थायी भाव’ ही रस-दशा को प्राप्त होता है। पढ़ने वाले या सुनने वाले के मन में उत्तपन स्थायी भाव ही विभावादि से एक होकर रस रूप में परिणित हो जाता है। रस को ‘काव्य की आत्मा अथवा प्राण तत्व’ माना जाता है।
उदहारण – “निकेश जी बागीचे में भ्रमण कर रहे है। एक और से अंजली जी आ जाती है। चरों तरफ एकान्त है और प्रातःकालीन वायु पैर पसारे हुए है। गुलाब के फूल की मीठी सुगंध मन को मोह रही है। निकेश जी ऐसी स्थिति में अंजली जी पर मोहित होकर उनकी और आकर्षित होने लगते है। निकेश जी को अंजली जी की तरफ देखने की इच्छा होती है और उसी के साथ लज्जा और ख़ुशी तथा रोमांच आदि होता है।”
इस सारे वर्णन को सुन-पढ़कर पाठक या श्रोता के मन में ‘रति’ उत्तपन हो जाती है। यहाँ अंजली जी ‘आलम्बनविभाव’, एकान्त तथा प्रातःकालीन बागीचे का वह सारा दृश्य ‘उद्यीपनविभाव’, निकेश और अंजली में कटाक्ष-हर्ष-लज्जा-रोमांच आदि ‘व्यभिचारी भाव’ हैं, जिन सबके मिलने से ‘स्थायी भाव’ ‘रति’ को उत्पत्र कर ‘शृंगार रस’ का संचार होता हैं।
भरतमुनि के अनुसार – ‘रसनिष्पत्ति’ के लिए नाना भावों का ‘उपगत’ होने के समान है, जिसका अर्थ है कि विभाव, अनुभाव और संचारीभाव यहाँ स्थायी भाव के समीप आकर अनुकूलता ग्रहण कर लेते हैं।
आचार्यों के अनुसार ‘रस‘ की परिभाषा कुछ इस प्रकार से है – ‘विभावानु भावव्य भिचारी संयोगा द्रस निष्पत्ति:’- नाट्यशास्त्र। अर्थात, विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
Ras Ke Ang In Hindi – रस के अंग
रस के चार अंग है–
- विभाव
- अनुभाव
- व्यभिचारीभाव
- स्थायीभाव
1.विभाव – रस को उत्तपन करने वाले कारणों को ‘विभाव ‘ कहा जाता है।
विभाव के दो भेद हैं –
- आलंबन विभाव
- उद्दीपन विभाव।
विश्र्वनाथ के अनुसार (साहित्य दर्पण ) – ‘रत्युद्बोधका: लोके विभावा: काव्य-नाट्ययो:’ अर्थात् जिनके द्वारा सामाज में रति जैसे भावों का उदबोधन किया जाता हैं, वे विभाव कहलाते हैं।
2. अनुभाव – जो भाव आलम्बन और उद्यीपन विभावों के कारण उत्पत्र होते है वह अनुभाव।
विश्र्वनाथ के अनुसार (साहित्य दर्पण ) –
”उद्बुद्धं कारणै: स्वै: स्वैर्बहिर्भाव: प्रकाशयन् ।
लोके यः कार्यरूपः सोऽनुभावः काव्यनाट्ययो: ।।”
अनुभाव के भेद
अतः अनुभाव के चार भेद है-
- कायिक
- वाचिक
- मानसिक
- आहार्य
- सात्विक
अनुभावों की कुलसंख्या 8 है –
- स्तंभ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर-भंग
- कम्प
- विवर्णता
- अश्रु
- प्रलय।
3. व्यभिचारीभाव – मनुष्य के मन में आने जाने वाले भावों को व्यभिचारी भाव कहा जाता है। यह भाव परिस्थितिओं के अनुसार बदलते रहते है यह कभी कम होते है तो कभी जाएदा।
संचारीभावों की संख्या
- निर्वेद
- ग्लानि
- शंका
- असूया
- मदा
- श्रम
- आलस्य
- दैन्य
- चिन्ता
- मोह
- स्मृति
- धृति
- वृता
- औत्सुक्य
- आवेगा
- निद्रा
- अपस्मार
- सुप्ति
- विक्षेप
- जडता
- गर्व
- विषाद
- आवहेलना
- स्मय
- हर्ष
- औग्र्य
- अमर्ष
- अवहित्था
- उग्रता
- मात्सर्य
- सन्ताप
- व्याधि
- उन्मादा
आचार्य भरत के अनुसारव्यभिचारी भाव के सिद्धांत –
- देश, काल तथा अवस्था
- उत्तम, मध्यम और अधम प्रकृति के लोग
- आश्रय की अपनी प्रकृति या अन्य व्यक्तियों की उत्तेजना के कारण अथवा वातावरण के प्रभाव वाले लोग
- स्त्री और पुरुषके अपने स्वभाव के भेद।
(4) स्थायी भाव – रस का मूलभूत कारण स्थायी भाव कहलाता है।
पंडितराज जगन्नाथ जी के अनुसार (रसगंगाधर) – ”सजातीय – विजातीयैरतिरस्कृतमूर्तिमान्। यावद्रसं वर्तमान: स्थायिभाव: उदाहृतः।।”
अर्थात जिस भाव का स्वरूप सजातीय एवं विजातीय भावों से तिरस्कृत न हो सके और जबतक रस का आस्वाद हो, तबतक जो वर्तमान रहे, वह स्थायी भाव कहलाता है।
Types Of Ras In Hindi – रस के भेद
साहित्य के अनुसार ‘रस’ 13 प्रकार के होते है जिन कावर्णन निम्नलिखित है –
- शृंगाररस – इसमें सयोंग श्रृंगार तथा वयोग श्रृंगार शामिल है। और इसका स्थायी भाव रति तथा प्रेम है।
- हास्यरस – हास्य रस का स्थायी भाव हास् है।
- करूणरस – करुणा रस का स्थायी भाव शोक है।
- द्ररस – रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है।
- वीररस – वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।
- भयानकरस – भयानक रस का स्थायी भाव भय है।
- बीभत्सरस – बिभस्त रस का स्थायी भाव घृणा है।
- अदभुतरस – अद्भुद रस का स्थायी भाव विस्मय तथा आश्चर्य है।
- शान्तरस – शांत रस का स्थायी भाव वैराग्य है।
- वत्सलरस – वत्सल रस का स्थायी भाव वात्स्य रति है।
- भक्तिरस – भक्ति रस का स्थायी भाव रति तथा अनुराग है।
Conclusion – Hindi Vyakaran Mein Ras एक ऐसा काव्यशास्त्र होता है, जो जिसमें मानव कोई ऐसा दृश्य देखकर, सुनकर आनंद मिलता है, यहां पर आप रस विषय से जुड़ी हुई सभी जानकारी पा सकते हैं जैसे Ras Kise Kahate Hain, Ras Ke Bhed, Visheshta क्या है।
FAQs About Ras Kya Hai In Hindi
Q1. हिंदी व्याकरण में रस किसे कहते हैं ?
Ans : किसी काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से मन के अंदर आनंद का भाव उत्पन्न होता है, उसे Ras Kahate Hain.
Q2. रस के कितने अंग होते हैं ?
Ans : Ras Ke 4 Ang Hote Hain – विभाव, अनुभाव, स्थयीभाव और संचारी भाव।
Q3. रस का शाब्दिक अर्थ क्या होता है ?
Ans : Ras Ka Shabdik Arth आनंद होता है, यही काव्य का रस होता है।
Q4. रस में श्रृंगार का स्थायी भाव क्या होता है ?
Ans : रस में श्रृंगार का स्थायी भाव “रति” होता है।
Q5. रस में संचारी भाव की संख्या कितनी है ?
Ans : रस में संचारी भाव की संख्या 33 है।