दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर परस्पर किसी समूह को बनाते हैं, उस समूह को शब्द कहा जाता है। किसी भी शब्द का कोई ना कोई अर्थ जरूर होता है।
साधारण शब्दों में कहें दो जब वर्णो के मेल से कोई सार्थक वर्ण समुदाय बन जाता है, तो उसे शब्द कहा जाता है, जैसे – पलंग, संदूक, बोतल, किताब, ठंडा, ब्लैकबोर्ड, कुर्सी, मोबाइल, कंघी, मोमबत्ती, चाय, इत्यादि।
किसी भी भाषा के सभी शब्दों की उत्पत्ति दो या दो से अधिक वर्णों के मिलने से ही होती है, परन्तु यह उस भाषा के वर्ण समूह पर निर्भर करता है कि वह कितने वर्ण मिलने पर एक शब्द बनाती है।
लेकिन लगभग हर भाषा में दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर ही किसी शब्द का निर्माण करते हैं। जैसे – नर में दो वर्णों का मेल है एक न और दूसरा र और व्याकरण में निरर्थक शब्दों के लिए किसी भी प्रकार का स्थान नहीं है।
कई बार अकेले वर्ण भी किसी अर्थ को व्यक्त करते हैं इसका उदाहरण नीचे एक वाक्य है
तुम क्यों न गए वहां
इस वाक्य में केवल एक वर्ण (न) का इस्तेमाल किया गया है जोकि अकेले एक शब्द का रूप ले रहा है, न का अर्थ नहीं होता है और हिंदी भाषा के व्याकरण में लगभग न ही एक ऐसा शब्द है जो अकेले ही किसी बात का अर्थ व्यक्त करता है।
शब्द को हम दो रूपों में विभाजित करते हैं – एक तो इनका अपना रूप होता है जोकि बिना किसी परिवर्तन के बनता है और दूसरा रूप वह है जो कार्य, लिंग, वचन, पुरुष, और अंश के आगेपीछे लगाकर बनाया जाता है, और शब्द के इस रूप को पद कहते हैं।
शब्दों की रचना अर्थ और ध्वनि के मेल द्वारा होती है जब एक या एक से अधिक वर्ण मिलकर किसी ध्वनि का निर्माण करते हैं तब उस ध्वनि को शब्द कहते हैं, जैसे – गाय यह शब्द दो वर्णों के मेल से बनाहै गा+ऐ, इसलिए गाय एक शब्द का रूप है और शब्द प्रया: वर्णनात्मक होते हैं हालांकि कई बार शब्द धन्यात्मक भी होंगे और व्याकरण में निरर्थक शब्दों पर विचार नहीं किया जाता।
अब हम बात करते हैं शब्द और पद की शब्दों के भेद जाने से पहले शब्द और पद का अंतर समझ लेना अति आवश्यक है। यह बात तो आप समझ ही गए कि शब्द के वर्णों के मेल से शब्द बनते हैं, यही शब्द मिलकर किसी वाक्य का निर्माण करते हैं और अर्थवाचक बनकर आते हैं, और इसी अर्थवाचक वाक्य को पद कहा जाता है, जैसे – गाय इधर लाओ इस वाक्य में दो पद है – एक नामपद और दूसरा क्रियापद है।
शब्द के भेद
प्रयोग, उत्पत्ति, और अर्थ के अनुसार शब्द के कई भेद होते हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार से किया है।
1) अर्थ की दृष्टि से शब्द-भेद
(i) साथर्क शब्द (Saturn word)
(ii) निरर्थक शब्द (nonsense words)
(i) साथर्क शब्द – जैसा कि इस के शब्द से ही पता चलता है कि ऐसे शब्द जिनके प्रयोग से किसी बात का अर्थ स्पष्ट हो वह सार्थक शब्द कहलाते हैं जैसे – पलंग, संदूक, बोतल, किताब, ठंडा, ब्लैकबोर्ड, कुर्सी, मोबाइल, कंघी, मोमबत्ती, चाय, इत्यादि।
(ii) निरर्थक शब्द – जब दो या दो से अधिक वर्ण मिल तो जाए लेकिन उनका कोई अर्थ ना बने तो उन शब्दों को निरर्थक शब्द का नाम दिया जाता है। जैसे – सोलोइय, युफ्सियत, ओसभ, कोकी आदि। सार्थक शब्दों के अर्थ होते हैं जबकि निरर्थक शब्दों का कोई भी अर्थ नहीं होता।
2) प्रयोग की दृष्टि से शब्द-भेद
दो या दो से अधिक वर्ण मिलकर शब्द का निर्माण करते हैं, और शब्द मिलकर एक भाषा का निर्माण करते हैं शब्द को हम भाषा की प्राणवायु भी कह सकते हैं, क्योंकि बिना शब्दों के भाषा का कोई अस्तित्व नहीं है।
किसी भी भाषा में वाक्यों में शब्दों का प्रयोग किस प्रकार से किया जायेगा, इस आधार पर हम शब्दों को दो भागों में बांटते हैं।
(i) विकारी शब्द – जब किसी शब्द के रूप में लिंग, वचन, और कार्य के आधार पर किसी प्रकार का परिवर्तन आ जाता है तो उन शब्दों को विकारी शब्द कहते हैं।
विकार शब्द का अर्थ होता है परिवर्तन मतलब लिंग आदि के आधार पर शब्द में परिवर्तन।
जैसे लिंग के आधार पर परिवर्तन –
लड़का काम कर रहा है – लड़की काम कर रही है।
लड़की खाना खा रही है – लड़का खाना खा रहा है।
लड़का पढ़ रहा है – लड़की पढ़ रही है।
लड़की बर्तन धो रही है – लड़का बर्तन धो रहा है।
उपयुक्त वाक्य में लिंग के आधार पर शब्दों में परिवर्तन किया गया है जैसे ‘कर रहा’ का ‘कर रही’ हो गया, जब लिंग के आधार पर परिवर्तन किया जाता है तो शब्दों में कुछ ज्यादा अंतर नहीं आता।
एकवचन और बहुवचन के आधार पर शब्दों में परिवर्तन –
लड़का खेलता है – लड़के खेलते हैं।
लड़की रोटी बनाती है – लड़कियां रोटी बनाती है।
औरत घर का काम करती है – औरतें घर का काम करती है
उपयुक्त वाक्यों में देखा जा सकता है कि किस प्रकार से एकवचन को बहुवचन में बदलने से शब्द का अर्थ बदल जा रहा है। ‘औरत’ शब्द सिर्फ एक औरत के लिए है जबकि ‘औरतें’ शब्द बहुत सारी औरतों के लिए है, इस प्रकार से वचन के आधार पर भी शब्दों में परिवर्तन होता है।
कारक के आधार पर शब्दों का परिवर्तन –
वह आदमी नौकरी करता है – उस आदमी को नौकरी करने दो।
वह लड़का पढ़ाता है – उस लड़के को पढ़ाने दो।
वह लड़की लिखती है – उस लड़की को लिखने दो।
ऊपर लिखित वाक्यों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि किस प्रकार से कारक के बदल जाने से शब्दों का अर्थ ही बदल जा रहा है। किसी वाक्य में कारक के प्रयोग से सिर्फ शब्द का अर्थ नहीं बदलता अपितु पूरे वाक्य का ही अर्थ बदल जाता है।
विकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है-
(i) संज्ञा (noun)
(ii) सर्वनाम (pronoun)
(iii) विशेषण (adjective)
(iv) क्रिया (verb)
(ii) अविकारी शब्द – जब शब्दों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता तो उन्हें अविकारी शब्द कहा जाता है जैसे – परंतु, तथा, धीरे-धीरे, अधिक आदि।
दूसरे शब्दों में कहें तो जिन शब्दों में लिंग, वचन, कार्य के आधार पर किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता वह अविकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे – तुम धीरे-धीरे वहां जाओ
परंतु तुम हो कौन
उपयुक्त वाक्य में लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है, उपयुक्त वाक्य का प्रयोग लड़के के लिए हो रहा है या लड़की के लिए हो रहा है इसका अर्थ बता पाना मुश्किल है।
अविकारी शब्द भी चार प्रकार के होते है-
(i) क्रिया-विशेषण (Adverb)
(ii) सम्बन्ध बोधक (Preposition)
(iii) समुच्चय बोधक(Conjunction)
(iv) विस्मयादि बोधक(Interjection)
3) उत्पति की दृष्टि से शब्द-भेद –
(i) तत्सम शब्द
(ii ) तद्भव शब्द
(iii ) देशज शब्द एवं
(iv) विदेशी शब्द।
(i) तत्सम शब्द – हिंदी भाषा संस्कृत भाषा का ही एक रूप है और हिंदी भाषा में बहुत सारे ऐसे शब्द है जो संस्कृत भाषा से लिए गए हैं परंतु उनका अर्थ और प्रयोग संस्कृत भाषा के समान ही किया जाता है, इन शब्दों को ही तत्सम शब्द कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो संस्कृत भाषा के वह शब्द जो हिंदी भाषा में लिए गए हैं और वह अपने वास्तविक रूप में प्रयोग किए जाते हैं, तत्सम शब्द कहलाते हैं
(ii ) तद्भव शब्द – हिंदी भाषा के व्याकरण वह शब्द जो संस्कृत भाषा से विकृत होकर हिंदी में आए हैं तद्भव शब्द कहलाते हैं। कहने का अर्थ है कि संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द जो सिर्फ थोड़े से ही बदलाव के साथ हिंदी भाषा में रूपांतरित किए गए हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं।
तद्धव शब्द दो प्रकार के है-
(i)संस्कृत से आनेवाले
(2)सीधे प्राकृत से आनेवाले।
(iii ) देशज शब्द – भारत देश में भिन्न-भिन्न स्थानों में भिन्न-भिन्न प्रकार की बोलियां बोली जाती है और हिंदी भाषा में कई ऐसे शब्द है जो देश के विभिन्न बोलियों से लिए गए हैं, इन्हीं शब्दों को देशज शब्द का नाम दिया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो जो शब्द किसी देश की विभिन्न भाषाओं से मातृभाषा में लिए गए हो वह देशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे- चिड़िया, कटरा, कटोरा, खिरकी, जूता, खिचड़ी, पगड़ी, लोटा, डिबिया, तेंदुआ, कटरा, अण्टा, ठेठ, ठुमरी, खखरा, चसक, फुनगी, डोंगा आदि।
(iv) विदेशी शब्द – विदेशी भाषाओं से जो शब्द हिंदी भाषा में जोड़े गए हैं वह शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं। साधारण शब्दों में कहें तो जो शब्द विदेशियों के संपर्क में आने के बाद हिंदी भाषा में लिए गए हैं, वह शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।
आज के समय में हिंदी भाषा में अनेक प्रकार के विदेशी शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनका वर्णन निम्नलिखित है –
अंग्रेजी भाषा से लिए गए शब्द – हॉस्पिटल, डॉक्टर, बुक, रेडियो, पेन, पेंसिल, स्टेशन, कार, स्कूल, कंप्यूटर, ट्रेन, सर्कस, ट्रक, टेलीफोन, टिकट, टेबुल इत्यादि।
फारसी भाषा से लिए गए शब्द – आराम, अफसोस, किनारा, गिरफ्तार, नमक, दुकान, हफ़्ता, जवान, दारोगा, आवारा, काश, बहादुर, जहर, मुफ़्त, जल्दी, खूबसूरत, बीमार, शादी, अनार, चश्मा, गिरह इत्यादि।
अरबी भाषा से लिए गए शब्द – असर, किस्मत, खयाल, दुकान, औरत, जहाज, मतलब, तारीख, कीमत, अमीर, औरत, इज्जत, इलाज, वकील, किताब, कालीन, मालिक, गरीब, मदद इत्यादि।
तुर्की भाषा से लिए गए शब्द – तोप, काबू, तलाश, चाकू, बेगम, बारूद, चाकू इत्यादि।
चीनी भाषा से लिए गए शब्द – चाय, पटाखा,आदि।
उपयुक्त शब्दों के अलावा भी कई ऐसे शब्द जो विदेशी भाषाओं से लिए गए हैं, इनका का प्रयोग हिंदी भाषा में आज के समय में भी होता है। इसके अलावा वर्तमान समय में भी कई शब्द विदेशों से हिंदी भाषा में लिए जा रहे हैं जिनका उपयोग धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।