Matrik Chhand Kise Kahate Hain – काव्य में छन्द का प्रयोग काव्य की सुंदरता तथा काव्य को सही क्रम में लिखने के ढंग के लिये किया जाता है। अब हम यहाँ Matrik Chhand Ki Paribhasha, Matrik Chhand Ke Prakar के बारे में पढ़ने जा रहे है तो इससे सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
Matrik Chhand Kise Kahate Hain – मात्रिक छन्द की परिभाषा
जिन छन्दों में पद्य की रचना मात्राओं की गणना, लघु तथा गुरु (दीर्घ) , गति तथा यति के आधार पर की जाती है उनको Matrik Chhand Kahate Hain साधारण भाषा में कहे तो मात्राओं की गणना के आधार पर जिन छन्दों को लिखा जाता है वह मात्रिक छन्द कहलाते हैं।
मात्रिक छन्द के प्रत्येक चरणों मे मात्राओ की संख्या समान होती है।
Matrik Chhand Ke Bhed In Hindi – मात्रिक छंद के प्रकार
मात्रिक छन्द को तीन प्रकार से विभजित किया गया है जो कि आपको निम्नलिखित दिये गए हैं।
- सम मात्रिक छंद
- अर्द्ध सम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
1. सम मात्रिक छंद परिभाषा
जिन छन्दों के प्रत्येक चरणों मे समान मात्राओं का प्रयोग किया जाता है उन छन्दों के सम मात्रिक छंद कहते हैं।
जैसे –
- अहीर (11 मात्रा)
- मानव (14 मात्रा)
- तोमर (12 मात्रा)
- राधिका (22 मात्रा)
- पीयूषवर्ष, सुमेरु (दोनों 19 मात्रा)
- चौपाई (सभी 16 मात्रा), अरिल्ल, पद्धरि/पद्धटिका
- रूपमाला, रोला, दिक्पाल (सभी 24 मात्रा)
2. अर्द्ध सम मात्रिक छंद
ऐसे छन्द जिनके पहले तथा तीसरे चरणों मे और दूसरे तथा चौथे चरणों मे समान मात्राएँ पाई जाती है। उन छन्दों को अर्द्ध सम मात्रिक छंद कहते हैं।
जैसे –
- बरवै
- सोरठा (दोहा का उल्टा)
- दोहा (विषम- 13, सम- 11)
- उल्लाला (विषम-15, सम-13)।
3. विषम मात्रिक छंद
काव्य में प्रयोग होने वाले ऐसे छन्द जिनके चरणों मे अधिक समानता नही पाई जाती है। उन छन्दों को विषम मात्रिक छंद कहते हैं।
जैसे –
- कुण्डलिया (दोहा + रोला)
- छप्पय (रोला + उल्लाला)।
- प्रमुख मात्रिक छंद
- दोहा छंद
दोहा छन्द के पहले और तीसरे चरण में तेरह – तेरह मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में ग्यारह – ग्यारह मात्राएँ होती हैं। दोहा छन्द के दूसरे और चौथे चरण के अंत मे एक लघु स्वर अवश्य पाया जाता है।
उदाहरण –
“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
उपर्युक्त दिए गए छन्द के पहले और तीसरे चरण में 13 -13 मात्राएँ है तथा दूसरे और चौथे चरण में 11 – 11 मात्राएँ है तथा चरण के अंत मे लघु स्वर हैं अतः यह दोहा छन्द का उदाहरण है।
सोरठा छंद
इसके पहले तथा तीसरे चरण में 11- 11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 13- 13 मात्राएँ होती हैं। यह छन्द दोहा छन्द का विपरीत होता है। इसके पहले तथा तीसरे चरण के अंत मे एक लघु स्वर पाया जाता है।
उदाहरण –
जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
उपर्युक्त दिए गए काव्य के पहले और तीसरे चरण में 11 -11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 -13 मात्राएँ है अतः यह सोरठा छन्द का उदाहरण है।
रोला छंद
इसमे 4 चरण होते हैं, रोला छन्द के दोनों चरणों को मिलाकर 24 मात्राएँ होती हैं तथा इसके चरण के अंत मे दो लघु और दो दीर्घ होते हैं।
उदाहरण –
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
दिए गए इस काव्य में दोनों चरणों को मिलाकर 24 मात्राएँ है तथा चरण के अंत मे दो दीर्घ और दो लघु हैं।
गीतिका छंद
यह एक मात्रिक छन्द है इसमें चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 14 तथा 12 के क्रम में 26 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंतिम में लघु तथा दीर्घ स्वर होते हैं।
उदाहरण –
“हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।”
इस काव्य के प्रत्येक चरण में 14 तथा 12 के क्रम में 26 मात्राएँ है इसलिए यह गीतिका छन्द का उदाहरण है।
चौपाई छंद
यह भी मात्रिक छन्द का प्रकार है इस छन्द के प्रत्येक चरण में 16 – 16 मात्राएँ होती है तथा चरण के अंत मे दो गुरु ( दीर्घ ) होते हैं।
उदाहरण –
बंदउँ गुरु पद पदुम परागा ।
सुरुचि सुबास सरस अनुराग॥
अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू॥
उपर्युक्त काव्य के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ है तथा प्रत्येक चरण के अंत मे दो गुरु ( दीर्घ ) उपस्थित हैं।
कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ छंद एक विषम मात्रिक छन्द होता है इस छन्द का निर्माण रोला छन्द तथा दोहा छन्द के योग से होता है। सर्वप्रथम इसमे दोहा छन्द के दो चरण होते है उसके बाद इसमे रोला छन्द का प्रयोग किया जाता है जिससे कुंडलियाँ छंद का निर्माण होता है।
Conclusion – हमने यहां पर मात्रिक छंद विषय के ऊपर सभी जानकारी सरल भाषा में प्रदान की है यहां पर आप जान पाएंगे Matrik Chhand Kya Hote Hain, Prakar, Niyam Aur Udaharan विशेषताएं आदि बताई गई हैं।
FAQs About Matrik Chhand Kya Hai In Hindi
Q1. मात्रिक छंद किसे कहते हैं ?
Ans : मात्रिक छंद वह छंद जिसमें वर्णों और क्रमो की संख्या निर्धारित नहीं होती है, मात्रिक छंद में मात्रा की संख्या निर्धारित रहती है, इनको Matrik Chhand Kahate Hain.
Q2. मात्रिक छंद की पहचान क्या होती है ?
Ans : मात्रिक छंद में पघ की रचना और मात्राओं की गणना यति के आधार पर होती है, जो की मात्रिक छंद की पहचान है।
Q3. मात्रिक छंद का दूसरा नाम क्या है ?
Ans : Matrik Chhand Ka Dusra Naam “वृत्त” है, यह एक संस्कृत भाषा का शब्द है।